"यादों का शहर..."
" ना शौंक था ,ना आदत थी,
लिखने की,,
तन्हाइयों ने,
लिखना सीखा दिया ,,
कोई ना मिला ,
जब हाल-ए -दिल सुनने वाला ,,
कलम को ही सुनाके ,
रुला दिया ,,
अब तो मोहब्बत हो गयी है ,
इस कागज़ कलम से ,,
जी-भर के सुनाता हूँ ,
इनको किस्से अपने ,
पलट के कहते कुछ ना हम से,,
सोचता हूँ ,
संजो दूं यादें ,
इन कागज़ के पन्नों पे ,,
बना गए मुझको ,
यादों का खंडहर जो ,,
शुक्रगुजार हो उन दिनों के ,,
लबों से ना ,लफ्ज़ निकले ,
जब वो साथ थे ,,
दूर क्या हुए उनसे ,
कलम ने कहर मचा दिया ,,
उनके साथ बिना ,
उनके साथ बिना ,
सारे नज़ारे फ़िके थे ,,
पर 'विजय' ने कलम से ,
नया 'शहर' सजा दिया ,,
v_jay...
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें